Wednesday, October 9, 2013

क्या क्रिकेट के जरिए बदलेगी अफगानिस्तान की पहचान


अफगानिस्तान की सड़कों पर जश्न का माहौल खत्म ही नहीं हो रहा है. जश्न मनाने की तमाम तस्वीरें इंटरनेट और अखबारों में हैं. ये जश्न अफगानिस्तान की टीम के 2015 विश्व कप में क्वालीफाई करने का है.
अफगानिस्तान ने कीनिया को हराकर 2015 विश्व कप के लिए क्वालीफाई कर लिया है. वैसे तो अफगानिस्तान की टीम टी-20 विश्व कप में पहले भी दो बार खेल चुकी है, लेकिन 50 ओवर के विश्व कप में खेलने की बात ही अलग है. ये मुख्य धारा का क्रिकेट है.
अफगानिस्तान की टीम को 2015 विश्व कप के लिए ग्रुप ए में जगह मिली है. जिसमें ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, श्रीलंका, न्यूजीलैंड और बांग्लादेश जैसी टीमें हैं. अफगानिस्तान के लोगो में ये खुशी तब है जब अफगानिस्तान के ज्यादातर खिलाड़ी वहां रहते तक नहीं हैं.
अफगानिस्तान के ज्यादातर खिलाड़ी वहां प्रैक्टिस तक नहीं करते. अफगानिस्तान के लोगों में एक तबका ऐसा है जो क्रिकेट के खेल के नियम कानून तक नहीं जानता. फिर भी जश्न में हर कोई शरीक है. दरअसल ये राष्ट्रीय जश्न है. ये जश्न इस बात का है कि इन खिलाड़ियों ने देश को एक नई पहचान देने का काम किया है. ये ज्यादातर मौकों पर गलत वजहों से अखबारों की हेडलाइंस बनने वाले अफगानिस्तान की तस्वीर नहीं हैं. ये आतंकवाद, तालिबान और बम विस्फोटों का अफगानिस्तान नहीं है. ये अफगानिस्तान की ऐसी नई तस्वीर है जिस पर उन्हें गर्व है.
अफगानिस्तान की टीम का क्रिकेट से रिश्ता ज्यादा पुराना नहीं है. 2001 में अफगानिस्तान क्रिकेट फेडरेशन बनाया गया था. अफगानिस्तान की टीम ने पहला दौरा पाकिस्तान का किया था. 2004 में अफगानिस्तान की टीम ने एशियन क्रिकेट काउंसिल के एक टूर्नामेंट में बहरीन को हराया. 2007 में टी-20 का एक टूर्नामेंट जीता. यहीं से अफगानिस्तान की टीम के मुख्यधारा में आने के संघर्ष की शुरूआत हुई थी.
चुनौती और भी हैं
साल 2011 विश्व कप के लिए क्वालीफाई करने वाली टीमों की दौड़ में अफगानिस्तान की टीम छठे नंबर पर रही. उसे विश्व कप में जगह तो नहीं मिल पाई, लेकिन 4 साल के लिए वनडे का आईसीसी स्टेटस जरूर मिल गया. 2010 में अफगानिस्तान ने आयरलैंड को हराकर वेस्टइंडीज में खेले गए टी-20 विश्व कप में जगह बनाई. 2012 टी-20 विश्व कप में भी अफगानिस्तान की टीम ने शिरकत की. इसके बाद इसी साल जून में अफगानिस्तान की टीम को आईसीसी की एसोसिएट मेंमरशिप मिल गई.
एसोसिएट मेंबरशिप मिलने का सीधा मतलब था आईसीसी से मिलने वाली मदद में इजाफा. आईसीसी से अफगानिस्तान को मिलने वाली सालाना मदद 7 लाख डॉलर से बढ़ाकर साढ़े आठ लाख हो गई. जिसका नतीजा अब सभी के सामने है.
हालांकि अफगानिस्तान के सामने चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं. वहां के हालात किसी से छिपे नहीं है. अफगानिस्तान के खिलाड़ियों को अब भी बड़े खिलाड़ियों के खिलाफ या साथ खेलने के इक्का दुक्का मौके ही मिलते हैं.
अफगानिस्तान के कोच कबीर खान की फिलहाल सबसे बड़ी प्राथमिकता ये है कि उनके खिलाड़ियों को किसी भी तरह पूरे साल क्रिकेट खेलने का मौका मिलता रहे. कबीर खान खुद पाकिस्तान के लिए खेल चुके हैं. उनकी बड़ी चाहतों में ये भी शुमार है कि इंडियन प्रीमियर लीग जैसे बड़े टूर्नामेंट में भी अफगानिस्तान के खिलाड़ियों को खेलने का मौका मिले.
उनका ये भी मानना है कि भारत, श्रीलंका और पाकिस्तान जैसी एशिया की बड़ी क्रिकेट टीमों को भी अफगानिस्तान की टीम को बढ़ावा देना चाहिए.
कबीर खान अपनी टीम की खासियत ये बताते हैं कि बाकी टीमें बड़े टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई करने पर ही खुश हो जाती है, लेकिन अफगानिस्तान की टीम क्वालीफाई करने के बाद वहां जीतना भी चाहती है. यकीनन इस चाहत में कोई तकलीफ नहीं है बशर्ते अफगानिस्तान के खिलाड़ी बड़े स्तर पर अच्छा प्रदर्शन भी करें.
अफगानिस्तान की टीम के सामने अभी पहली चुनौती अगले टी-20 विश्व कप में जगह बनाने की है और उसके बाद अच्छे प्रदर्शन की. 2015 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के मौसम और वहां की पिचों के लिए खुद को ढालने की शुरूआत भी करनी होगी. रास्ता आसान नहीं है लेकिन जिन रास्तों से गुजरकर ये टीम इस मुकाम तक पहुंची है ये कहा जा सकता है कि इनके इरादे भी कमजोर नहीं हैं.

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