Tuesday, October 8, 2013

पढें देवरिया के नौजवान के यात्रा संस्मरण: व्यंग्य ‘बुरी नजर वाले, तेरा मुंह काला’ , कभी साइड से आती हो, कभी पीछे से आती हो. मेरी जां हार्न दे देकर, मुझे तुम क्यों सताती हो.

कभी साइड से आती हो, कभी पीछे से आती हो.
मेरी जां हार्न दे देकर, मुझे तुम क्यों सताती हो.

मैंने अत्यंत ही सूक्ष्म दृष्टि से विश्लेषण करने के बाद पाया है कि यह शेर अत्यंत ही गहन जीवन दर्शन से ओतप्रोत, मारकता से भरपूर, ताड़कता से अविछिन्न, भाषिकता से लदे-फदे शायरी की अदबी दुनिया में गुलशन नंदाई हैसियत से जाने जाते हैं. कई शेरों की तीक्ष्णता तो कमाल-ए-दाद है, मुलाहिजा फरमाएं...        

  ‘बुरी नजर वाले, तेरा मुंह काला’ 

अब आप सोच रहे होंगे कि भैया, कहानी क्या है. तो चलिये आपको बता ही देते हैं. नये शहर में कदम रखते ही नया अंदाज टाइप का मामला बनता ही है. सो मैंने भी शाहरूख वाला हेयर स्टाइल बनाकर कंघी मारते हुए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कदम रखा. सुना था कि दिल्ली दिलवालों की है और आपको तो पता ही है दिलवालों की दुनिया के बेताज बादशाह शाहरूख खान हैं. मैंने भी सोचा कि अब उनके शहर में रहना है तो स्टाइल उन्हीं का फॉलो किया जाए.

उपरोक्त शायरी पढ़ते हुए मैं टैम्पो में बैठ गया. ये टेम्पो ड्राइवर सभी जगहों पर एक ही टाइप के लगते हैं. सभी समान. कहीं कोई बदलाव नहीं. ना तो जुबान में और ना ही जेब ढ़ीली करने में. देवरिया से दिल्ली तक कहीं भी मुझे कुछ अलग नहीं दिखे. इनके ऑटो की शायरी तो देखकर बड़ा सुकून मिला. देवरिया में न जाने कितनी बार तपती दोपहरी में, मेरे उदास अकेले सफर को अचानक दिलचस्प और हसीन बना डाला करते थे ये. आज भी कुछ ऐसा ही दिखा.

ऑटो से बाहर शहर को नजरों में छुपा लेना चाह रहे थे हम. अभी कुछ ही दूर गए थे कि देखा हमारे शहर जैसे ही छोटे-छोटे सिनेमा घरों में फिल्में लगी थीं...मुंबई की किरण बेदी, एक और वॉन्टेड...गरमा गरम जवानी..ससुरा बड़ा पइसा वाला..

सबसे अच्छी बात यह है कि फिल्म 'मुंबई की किरण बेदी' और लोकेशन सारे हैदराबाद के ..अब हम समझे कि भैया, हम छोटे शहर वाले ही नहीं ये बड़े शहर वाले भी हमारी तरह होते हैं. थोड़ी देर के लिए शहर की ऊंची इमारतों को देखकर जरा सकपका गये थे. वह डर निकल गया. कि भैया इन लोगों के पास भी कुछ एक्सट्रा टाइप का कुछ नहीं है.

सुबह से पेट में कोई दाना नहीं गया था तो सोचा चलो कुछ नाश्ता कर लिया जाए. नाश्ता कर ही रहे थे कि दो बाइक सवार हमारे पास खड़ी कुछ लड़कियों को घूरते हुए ....
दीवाने हैं, दीवानों को न घर चाहिए, न दर चाहिए, मुहब्बत भरी इक नजर चाहिए.
भैया, देवरिया हो या दिल्ली मनचलों का मन हर जगह समान भाव से मचलता है. उफ..सोचा चलो जब देश की राजनीतिक धड़कन, अरे हां, लोकतंत्र के मंदिर, संसद को भी देख लें. यह मंदिर तो प्रेशर कुकर के समान निकला. अंदरखाने खिचड़ी कुछ और पक रही है और बाहर विजय चौक पर मीडिया के सामने सीटी कुछ और बजाई जा रही है..सोचा चलो यार दिल्ली से देवरिया भला...

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