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Thursday, October 10, 2013

पिछले दिनों माइक्रोसॉफ्ट ने नोकिया को 7.2 अरब डॉलर में खरीदने की डील तो फाइनल कर ली है लेकिन सवाल यह उठता है की इस सौदे से किसको फायदा होगा नोकिया या माइक्रोसॉफ्ट को? और क्या नोकिया अपना खोया हुआ वकार हासिल कर पाए?

क्या विन्डोज़ नोकिया के लिए कोई नया दरवाज़ा खोल पाएगी?



पिछले दिनों माइक्रोसॉफ्ट ने नोकिया को 7.2 अरब डॉलर में खरीदने की डील तो फाइनल कर ली है लेकिन सवाल यह उठता है की इस सौदे से किसको फायदा होगा नोकिया या माइक्रोसॉफ्ट को?
फ़िनलैंड की कंपनी नोकिया यूँ तो लगभग 150 साल पुरानी कंपनी है. 1865 में कंपनी फिन्निश रबर वर्क्स और फिन्निश केबल वर्क्स के नाम से जानी जाती थी. पेपर मिल से शुरुआत करने वाली कंपनी ने रबर के बूट और गाड़ी के टायर तक के धंधों में हाथ अजमाया.
फिनलैंड की एक नदी नोकियाविरता के पास ही कंपनी ने अपनी दूसरी मिल भी खोली. यह नदी दो लेक को जोड़ती है बाद में 1871 में इसी नदी के नाम से प्रेरित होकर और अपने व्यापार को नदी के पानी की ही तरह आगे बढ़ाने के लिए और लोगों को जोड़ने के लिए अपनी कंपनी का नाम नोकिया रख दिया और फिर नोकिया ने 1987 में अपना पहला मोबाइल फोन मोबिरा सिटी मैन 900 लांच किया और फिर धीरे धीरे अपने सभी धंधे बंद कर केवल मोबाइल फोन बनाने लगी.
नोकिया ने पहले 5110 और 3310 जैसे मोबाइल फोन निकाले जो मोबाइल फोन के इतिहास में बेहद मशहूर फोन बने और फिर सन 2003 में आए नोकिया 1100 ने तो कामयाबी के झंडे गाढ़ दिए. नोकिया 1100 ना सिर्फ दुनिया का सबसे ज्यादा बिकने वाला मोबाइल फोन बना बल्कि दुनिया का सबसे ज्यादा बिकने वाला इलेक्ट्रॉनिक कन्जुयमर प्रोडक्ट भी बना. इस तरह नोकिया भारत में तो नम्बर 1 बन गया लेकिन वर्ल्ड में नंबर 1 मोटोरोला के साथ उसकी जंग हमेशा चलती रही. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि कोई टॉप की कंपनी के हालात इतने खराब हो गए कि उसके बिकने के दिन आ गए वह भी तब जब अभी तक भी नोकिया भारत समेत पूरी दुनिया में दूसरे पाएदान पर मौजूद है.
नोकिया के पीछड़ने की वजह
इसका एक सबसे बड़ा कारण है की नोकिया को अपने ब्रांड और फोन पर घमंड आ गया था.और यह घमंड और भी ज्यादा तब बढ़ गया जब मोटोरोला जैसी कंपनी का बाज़ार खत्म सा हो गया.
आज टेक्नोलॉजी की दुनिया बहुत तेजी से बदलती है. एक साल के भीतर ही फोन आउटडेटिड हो जाते है.ऐसे में जरूरत है हर कंपनी को टेक्नोलॉजी की इस बदलती दुनिया में साथ के साथ कदम मिलाकर चलना.क्यूंकि बाज़ार में अनेक कंपनियां हैं और जहाँ कोई कंपनी नई टेक्नोलॉजी लेने में चूक गई तो वो चुक ही जाती है.
नोकिया,मोटोरोला और ब्लैकबेरी तीनों कंपनियां बदलती टेक्नोलॉजी को समझ नहीं सकी और जब तक समझी तब तक देर हो चुकी थी और बाज़ार किसी और कंपनियों के पास आ गया.
एप्पल,सैमसंग और एचटीसी ने इस बात को भली भाती समझा और अपने नए से नए टेक्नोलॉजी के उत्पाद बाज़ार में उतारती गयी तो सैमसंग ने इस अवसर का सबसे ज्यादा फायदा उठाया और आज सैमसंग भारत समेत पूरी दुनिया में नम्बर वन मोबाइल कंपनी बन गई है.
सैमसंग है नंबर वन मोबाइल कंपनी
एक सर्वे के अनुसार भारतीय बाज़ार में सैमसंग का  31.5% शेयर है और पूरी दुनिया में 24.7% शेयर है.
एप्पल ने जब अपना आई फोन निकाला तो नोकिया ने टच स्क्रीन वाले आई फोन का मजाक उड़ाया. एक बात और गौर करने की है कि जहाँ सैमसंग,सोनी और एल जी जैसी कंपनियां मोबाइल फोन के साथ अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी बनाती है तो नोकिया और ब्लैकबेरी दोनों उन कंपनियों में से है जो सिर्फ मोबाइल फोन बनती है यानि कंपनी की आमदनी सारी मोबाइल फोन पर ही टिकी हुई है.
ब्लैकबेरी एक ऐसी कंपनी है जो एक क्लास के लिए अपने फोन बनाती है और वह अकेली कंपनी है जो अपने स्मार्ट फोन कुएर्टी कीपैड के साथ लाती है और लोग उसे शुरू से बहुत पसंद भी करते है लेकिन ब्लैकबेरी ने अपने 7ओ एस के बाद बीबी 10 लाने में काफी वक्त लगा दिया.
हालाँकि बीबी 10 एक दम नया और अलग ऑपरेटिंग सिस्टम है और लोग इसे पसंद भी कर रहे है. एप्प्स के मामले में भी यह विंडोज से आगे है लेकिन इस देरी से ब्लैकबेरी को नुकसान तो हुआ ही.
नोकिया की हकीकत
अब बात नोकिया की करें जो हर वर्ग के लिए फोन बनाती है तो इसने अपने फीचर फोन से स्मार्ट फोन लाने में तो देरी की ही लेकिन उससे पहले यह सिंगल सिम से ड्यूल सिम फोन लाने में भी काफी देरी कर चुका था.
नोकिया इंडिया के एमडी डी शिव कुमार ने भी कंपनी से अलविदा लेते हुए इस बात का अफ़सोस जताया था की ड्यूल सिम के बाज़ार को समझने में हमसे चूक हो गई.
हालाँकि नोकिया ने अपनी इस गलती को कम से कम स्वीकारा तो सही लेकिन नोकिया के वर्तमान अधिकारी तो अब भी यही मानते है की एंड्राइड जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम पर न जाकर विंडोज पर जाना उनका एक दम ठीक निर्णय था.
नोकिया ने शुरुआत में जल्दबाजी में विंडोज 7 के साथ अपने स्मार्ट फोन निकाले और एप्पल,ब्लैकबेरी और एंड्राइड के खाने पीने की वस्तुओं के नाम की तर्ज पर मेंगो नाम रखा, फिर बाद में विंडोज 8 लांच हुई तो इन फोन को विंडोज 8 पर अपग्रेड भी नहीं किया जा सकता था. ऐसे में नोकिया के यह मैंगो खट्टे ही साबित हुए.
नोकिया ने विंडोज सीरीज लुमिया को अपने स्मार्ट फोन की सीरीज रखी है तो आशा सीरीज को अपने ड्यूल सिम की सीरीज में रखा. आशा सीरीज में तो नोकिया ने अपनी पकड़ बनाली लेकिन लुमिया सीरीज में उसे अभी तक संघर्ष ही करना पड़ रहा है.
ऐसा नहीं है की लुमिया के फोन अच्छे नहीं है. यह सभी फोन जहाँ दिखने में रंग बिरंगे खूबसूरत लगते है तो इनकी सेंसेटिव स्क्रीन फोन इस्तेमाल करने में एक नया एहसास भी दिलाती है लेकिन विंडोज 8 के एप्प स्टोर में कम और बाकियों से अलग एप्प्स मिलती है जो इसके फ्लॉप होने का सबसे बड़े कारण में से एक है.
हालाँकि धीरे धीरे विंडोज की एप्प्स बढ़ भी रही है और लुमिया फोन की बिक्री भी लेकिन अब नोकिया विंडोज के पास आ चुकी है. कहते है जब सारे दरवाजे बंद हो जाते है तब कोई खिड़की खुली मिल जाती है लेकिन नोकिया के सामने तो सारे दरवाजे खुले हुए थे पर फिर भी नोकिया ने उस खिड़की में जाना पसंद किया जिसमे वो पहले ही फंस चुकी थी.
इस डील से नोकिया के लिए अब सारे दरवाजे बंद हो चुके है. माइक्रोसॉफ्ट पहले भी किन-1 और किन-2 के नाम से अपने मोबाइल फोन निकाल चुकी है लेकिन यह दोनों फोन ही फ्लॉप साबित हुए थे, इसलिए ऐसे में नोकिया को खरीद कर कंपनी अपने दामन से वो दाग़ भी मिटाना चाहती है ऐसे में अगर विंडोज के फोन नोकिया पर आगे चल कर चलते है तो फायदा विंडोज के साथ नोकिया को भी होगा लेकिन अगर विंडोज फोन नहीं चलते तो इसका सबसे बड़ा नुक्सान नोकिया को ही होगा क्यूंकि माइक्रोसॉफ्ट का तो अपना मुख्य कारोबार आगे भी चलता रहेगा लेकिन हो सकता है नोकिया का नाम बाज़ार से हटकर इतिहास कि किताबों तक ही सिमट कर रह जाए.                                   
माइक्रोसॉफ्ट का नोकिया को खरीदना खुद माइक्रोसॉफ्ट के लिए एक बड़ी चुनौती है.
यह चुनौती इसलिए भी है क्यूंकि माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के कई उत्पादों का बाज़ार दिन पर दिन कम होता जा रहा है. माइक्रोसॉफ्ट कि विंडोज भारत समेत पूरी दुनिया में न सिर्फ बेहद मशहूर है बल्कि सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाला एक सरल ऑपरेटिंग सिस्टम भी है.
विंडोज 7 जहाँ बहुत लोकप्रिय हुई तो विंडोज 8 भी खूब लोकप्रिय हो रही है. विंडोज के अलावा माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस कंपनी का बहुचर्चित सॉफ्टवेयर है जिसमे माइक्रोसॉफ्ट वर्ड,एक्सेल,पॉवरपॉइंट जैसे कहीं प्रोग्राम शामिल है,लेकिन कीमत ज्यादा होने की वजह से भारत जैसे कई देशों में लोग इस सॉफ्टवेयर को खरीदते कम है और इसका पायरेटेड वर्जन ज्यादा इस्तेमाल करते है.
हालाँकि विंडोज को भी लोग अलग से कम ही खरीदते है क्यूंकि इसकी भी कीमत ज्यादा होती है लेकिन लोग जब नया कंप्यूटर,लैपटॉप लेते है तो अधिकतर कंप्यूटर लैपटॉप में विंडोज प्रीलोडेड मिलती है.
अब बात इन्टरनेट एक्स्प्लोरर की करें तो एक समय था जब यह इंटरनेट ब्राउज़र की दुनिया का बादशाह था,लोग इंटरनेट चलाने के लिए इंटरनेट एक्स्प्लोरर का ही इस्तेमाल किया करते थे फिर ओपेरा,मोज़िला जैसे ब्राउज़र का लोगों ने इस्तेमाल करना शुरू किया जो इंटरनेट एक्स्प्लोरर से थोड़े से अलग थे लेकिन जब से गूगल ने गूगल क्रोम नाम से अपना ब्राउज़र निकाला तब से लोग इस ब्राउज़र से अपनी दूरी बनाते दिखने लगे. 
क्रोम जहाँ इंटरनेट एक्स्प्लोरर से न सिर्फ काफी अलग है बल्कि काफी फ़ास्ट भी है. हालाँकि माइक्रोसॉफ्ट ने भी तब से अब तक अपने इंटरनेट एक्स्प्लोरर में काफी बदलाव किए लेकिन लोग तो एक्स्प्लोरर से क्रोम में ट्रान्सफर हो ही गए. माइक्रोसॉफ्ट की हॉट मेल भी गूगल की जी मेल से पीछे है.    
गूगल ने हाल ही में अपने बहुचर्चित एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम पर लैपटॉप निकाले है और उससे पहले भी वो क्रोमबुक के नाम से लैपटॉप निकाल चुका है,यह लैपटॉप एच पी, एसर, लेनोवो जैसी कंपनिया बना रही है जो बरसों से विंडोज के साथ ही अपने प्रोडक्ट्स ला रही थी.सो माइक्रोसॉफ्ट को इस शेत्र में भी सतर्क रहने की जरूरत है जिस शेत्र में वो बादशाह है.

Wednesday, October 9, 2013

Microsoft awards over $100,000 to expert for finding bugs

Boston: Microsoft Corp is paying a hacking expert more than $100,000 for finding security holes in its software, one of the largest such bounties awarded to date by a high-tech company.

James Forshaw, who heads vulnerability research at London-based security consulting firm Context Information Security, won Microsoft's first $100,000 bounty for identifying a new "exploitation technique" in Windows, which will allow it to develop defenses against an entire class of attacks, the software maker said on Tuesday.

Forshaw earned another $9,400 for identifying security bugs in a preview release of Microsoft's Internet Explorer 11 browser, Katie Moussouris, senior security strategist with Microsoft Security Response Center, said in a blog.

Microsoft unveiled the rewards programs four months ago to bolster efforts to prevent sophisticated attackers from subverting new security technologies in its software, which runs on the vast majority of the world's personal computers.

Forshaw has also won a similar award from Hewlett-Packard Co for identifying a way to "own," or take ownership of Oracle Corp's Java software.

Microsoft was scheduled to release an automatic update to Internet Explorer on Tuesday afternoon to fix a security bug that it first disclosed last month. Security experts say that hackers had exploited that flaw to launch attacks on companies in Asia in an operation that the cyber security firm FireEye has dubbed DeputyDog.