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Friday, October 11, 2013

अत्यधिक मोबाइल उपयोग से कैंसर का खतरा

एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने से कोशिकाओं में एक तरह का तनाव पैदा होता है, जो कोशिकीय एवं अनुवांशिक उत्परिवर्तन से संबद्ध है तथा इसके कारण कैंसर का खतरा पैदा हो जाता है.
अध्ययन के मुताबिक मोबाइल फोन के इस्तेमाल से कोशिकाओं में उत्पन्न होने वाला विशेष तनाव (ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस) डीएनए सहित मानव कोशिका के सभी अवयवों को नष्ट कर देता है. ऐसा विषाक्त पराक्साइड एवं स्वतंत्र कणों के विकसित होने के कारण होता है.
तेल अवीव विश्वविद्यालय के औषधि संकाय एवं नाक-कान-गला विभाग के अध्यक्ष यानिव हमजानी ने मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वालों के लार का अध्ययन किया, जिसके आधार पर उन्होंने मोबाइल फोन के इस्तेमाल और कैंसर से पीड़ित होने की दर के बीच संबंध स्थापित किया. हमजानी, राबिन चिकित्सा केंद्र में गर्दन की सर्जरी विभाग के अध्यक्ष भी हैं.
वेबसाइट साइंसडेली डॉट कॉम के अनुसार, हमजानी और उनके सहयोगी शोधकर्ता रफील फीनमेसर, थॉमस शपित्जर, गीडॉन बहर, रफी नागलर और मोशे गेविश ने अपना शोध इस परिकल्पना के आधार पर की कि चूंकि मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते समय लार ग्रंथि बहुत नजदीक रहती है, इसलिए लार में उपस्थित तत्वों के आधार पर इसे जाना जा सकता है कि क्या इसका संबंध कैंसर होने से है.
मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने वाले और इस्तेमाल न करने वाले लोगों के बीच तुलनात्मक अध्ययन में उन्होंने पाया कि मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने वालों के लार में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस की उपस्थिति के संकेत अधिक हैं.
यह अध्ययन, वैज्ञानिक शोधपत्रिका 'एंटीऑक्सिडेंट्स एंड रिडॉक्स सिग्नलिंग' में प्रकाशित हुआ है.

हमेशा अच्छा नहीं होता आंखें मिलाना

हाल के एक अध्ययन के मुताबिक अगर सुनने वाला पहले से आपसे असहमत हो, तो आंखे मिलाने पर संभवत: उलटी प्रतिक्रिया मिल सकती है. पहले ऐसा माना जाता था कि देर तक आंखें मिलाना किसी को अपनी बात से सहमत करने या विनती करने का कारगार तरीका होता है.
एसोसिएशन फॉर साइकोलॉजिकल साइंस की पत्रिका, 'साइकोलॉजिकल साइंस' में हाल में प्रकाशित एक अध्ययन में ऐसा कहा गया है. यह अध्ययन कनाडा, जर्मनी और अमेरिका के शोधकर्ताओं के सहयोग का नतीजा था. यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के प्राध्यापक व अध्ययन के पहले लेखक फ्रांसेस चेन ने कहा, 'लोगों को प्रभावित करने के लिए आंखे मिलाने को शक्तिशाली समझने के बहुत से सांस्कृतिक विचार हैं.'
अध्ययन के मुताबिक निष्कर्ष दिखता है कि प्रत्यक्ष तौर पर आंखें मिलाना, 'संदेह से भरे श्रोताओं के विचारों को विरला ही बदल पाता है. इससे उतना प्रभाव नहीं होता है, जितना पहले कहा जाता था.' हाल में विकसित नेत्र गतिविधियों संबंधी प्रौद्योगिकी की मदद से शोधकर्ताओं ने परीक्षणों की एक श्रृंखला में आंखें मिलाने के प्रभावों की जांच की. उन्होंने पाया कि विविध विवादास्पद मुद्दों पर श्रोताओं ने वक्ता की आंखों में देखा जबकि वे वक्ता के तर्को से सहमत नहीं थे.
शोधकर्ताओं के मुताबिक वक्ता के बोलते वक्त श्रोताओं का उसकी आंखों में देखना उनके बीच केवल अधिक से अधिक ग्रहणशीलता दर्शाता है जबकि वे उस मुद्दे पर पहले से ही वक्ता से सहमत थे. हार्वर्ड के केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट की अध्ययन की सह-लेखक जूलिया मिंसन ने कहा, 'ध्यान रखने वाली बात यह है कि चाहे आप एक राजनेता हों या एक अभिभावक, अगर आप अलग मान्यताएं रखने वाले व्यक्ति से आंखें मिलाने का प्रयास कर रहे हैं तो संभवत: उसकी उलट प्रतिक्रिया मिलेगी.'