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Friday, October 11, 2013

पुरानी तकनीक के कारण मोबाइल फोन आसानी से बन सकता है जासूसी का निशाना

दुनिया में लाखों-करोड़ों मोबाइल फोन जासूसी का आसानी से निशाना बन सकते हैं, क्योंकि 1970 के दशक की तकनीक के जरिए इनका इस्तेमाल होता है. एक नए शोध में यह दावा किया गया है.
अमेरिका में होने जा रहे ‘ब्लैक हैट’ सुरक्षा सम्मेलन में इस शोध को प्रस्तुत किया जाएगा. इसमें कहा गया गया है कि पुरानी क्रिप्टोग्राफी तकनीक के इस्तेमाल के कारण बड़ी संख्या में मोबाइल फोन की सुरक्षा को खतरा है.
क्रिप्टोग्राफी के जरिए मोबाइल नेटवर्क पर बातचीत संभव होती है. ‘सेक्योरिटी रिसर्च लैब्स’ के साथ जुड़े विशेषज्ञ क्रिस्टोग्राफर कर्सटन नोल ने पाया कि किस तरह से मोबाइल फोन के स्थान, एसएमएस तक पहुंच तथा व्यक्ति के वायसमेल नंबर में बदलाव संभव है. नोल ‘रूटिंग सिम कार्ड’ नाम से एक प्रस्तुति 31 जुलाई को लास वेगास में आयोजित ब्लैक हैट सुरक्षा सम्मेलन में देंगे.
दुनिया भर में इस वक्त सात अरब से अधिक सिम कार्ड का इस्तेमाल किया जा रहा है. बातचीत के समय सिम कार्ड एनक्रिप्सन का इस्तेमाल करते हैं.
नोल के शोध में पाया गया है कि सिम एनक्रिप्सन मानक 1970 के दशक हैं, जिन्हें डाटा एनक्रिप्सन स्टैंडर्ड (डीईएस) कहा जाता है. शोध का संक्षिप्त रूप उनकी कंपनी के ब्लॉग पर प्रकाशित किया गया है. डीईएस को एनक्रिप्सन का सबसे कमजोर रूप माना जाता रहा है और कई मोबाइल ऑपरेटर अब एडवांस्ड एनक्रिप्सन का इस्तेमाल कर रहे हैं.
डीईसी के इस्तेमाल होने वाले मोबाइल फोन पर भेद लगाना आसाना है. ब्लैक हैट सुरक्षा सम्मेलन 2013 का मकसद भविष्य में आईटी क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर गहन मंथन करना है. इसमें दुनियाभर के जानकार लोग शामिल होंगे.

अत्यधिक मोबाइल उपयोग से कैंसर का खतरा

एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने से कोशिकाओं में एक तरह का तनाव पैदा होता है, जो कोशिकीय एवं अनुवांशिक उत्परिवर्तन से संबद्ध है तथा इसके कारण कैंसर का खतरा पैदा हो जाता है.
अध्ययन के मुताबिक मोबाइल फोन के इस्तेमाल से कोशिकाओं में उत्पन्न होने वाला विशेष तनाव (ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस) डीएनए सहित मानव कोशिका के सभी अवयवों को नष्ट कर देता है. ऐसा विषाक्त पराक्साइड एवं स्वतंत्र कणों के विकसित होने के कारण होता है.
तेल अवीव विश्वविद्यालय के औषधि संकाय एवं नाक-कान-गला विभाग के अध्यक्ष यानिव हमजानी ने मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वालों के लार का अध्ययन किया, जिसके आधार पर उन्होंने मोबाइल फोन के इस्तेमाल और कैंसर से पीड़ित होने की दर के बीच संबंध स्थापित किया. हमजानी, राबिन चिकित्सा केंद्र में गर्दन की सर्जरी विभाग के अध्यक्ष भी हैं.
वेबसाइट साइंसडेली डॉट कॉम के अनुसार, हमजानी और उनके सहयोगी शोधकर्ता रफील फीनमेसर, थॉमस शपित्जर, गीडॉन बहर, रफी नागलर और मोशे गेविश ने अपना शोध इस परिकल्पना के आधार पर की कि चूंकि मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते समय लार ग्रंथि बहुत नजदीक रहती है, इसलिए लार में उपस्थित तत्वों के आधार पर इसे जाना जा सकता है कि क्या इसका संबंध कैंसर होने से है.
मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने वाले और इस्तेमाल न करने वाले लोगों के बीच तुलनात्मक अध्ययन में उन्होंने पाया कि मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने वालों के लार में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस की उपस्थिति के संकेत अधिक हैं.
यह अध्ययन, वैज्ञानिक शोधपत्रिका 'एंटीऑक्सिडेंट्स एंड रिडॉक्स सिग्नलिंग' में प्रकाशित हुआ है.