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Tuesday, October 8, 2013

'सिउली' से महकती दुर्गा पूजा

'सिउली' से महकती दुर्गा पूजा

सिउली... एक खास फूल जो कि साल के बस इन्हीं एक आध महीने में खिलता है, और इसी फूल से होती है मां दुर्गा की पूजा. मान्यताएं कहती है कि देवों के समुद्र मंथन से निकला था सिउली का पेड़. इसे पारिजात पुष्प भी कहते हैं. शायद इसी लिए इस पुष्प को हरश्रृंगार भी कहते हैं.


हमारे यहां न जाने कितनी सारी मान्यताएं हैं और उन मान्यताओं से जुड़े कितने त्योहार. हर पर्व का अपना एक अलग ही रंग रूप देखने को मिलता है. और हर पर्व में कुछ खास चीजें होती हैं. हर त्योहार किसी खास फूल, फल या वातावरण का प्रतीक होता है. दुर्गा पूजा में भी कई ऐसी बातें हैं.
वैसे तो साल के इस वक्त में पूरे देश भर में नवरात्र की धूम मची रहती है मगर बंगाल में दुर्गा पूजा को एक महोत्सव की तरह मनाया जाता है. मान्यताएं कहती हैं कि श्री राम ने रावण का वध करने से पहले मां दुर्गा की पूजा की थी. देवताओं की शक्ति से बनी मां दुर्गा जिसने महिसासुर का वध किया था.
दुर्गा पूजा... साल के वो कुछ दिन जब हमारी आस्था देवी की प्रतिमा में बस जाती है. यह वो वक्त भी होता है जब हमें महसूस होता है कि अब गर्मी धीरे धीरे जा रही है. स्वयं ही खिल कर झरती हुई सिउली की खुशबू से सुबह भी महकती है.
सिउली... एक खास फूल जो कि साल के बस इन्हीं एक आध महीने में खिलता है, और इसी फूल से होती है मां दुर्गा की पूजा. मान्यताएं कहती है कि देवों के समुद्र मंथन से निकला था सिउली का पेड़. इसे पारिजात पुष्प भी कहते हैं. शायद इसी लिए इस पुष्प को हरश्रृंगार भी कहते हैं. दिन में पुष्पांजली के मंत्रोच्चारण से सारा समा गूंज उठता है. साधारण सी खिचड़ी जो प्रसाद के रूप में मिलती है, वो किसी स्वादिष्ट पकवान से कम नहीं लगती. संध्या आरती के वक्त जब हाथ में धुनोची लिए लोग ढ़ाक के धुनों पर थिरकते हैं तो वो नजारा ही देखने योग्य होता है. रामलीला और जगरातों की रोशनी से रात का अंधेरा भी प्रकाशित हो उठता है.
मान्यताएं बड़ी ही रोचक होती हैं. एक मान्यता के अनुसार नवरात्र में मां दुर्गा का आगमन होता है. देवी ससुराल से अपने माएके आती हैं. नवरात्र के छठ्ठे दिन देवी की प्रतिमा का प्रतिष्ठान किया जाता है. सप्तमी, अष्टमी और नवमी में देवी की प्रतिमा का पूजन होता है. भक्ति भाव और आस्था से परिपूर्ण विधियों का पालन किया जाता है. दसवें दिन मां की प्रतिमा को विसर्जित कर वापस ससुराल के लिए विदा कर दिया जाता है, इसी आशा के साथ कि अगले बरस मां फिर दर्शन देगी.




एक मान्यता यह भी है कि श्री राम ने मां दुर्गा की पूजा की थी. रावण का वध करने से पहले श्री राम शिव की पूजा कर रहे थे. भोलेनाथ ने ही राम को कहा शक्ति की पूजा करने के लिए. श्री राम ने 108 निल कमल पुष्पों से शक्ति की पूजा करनी चाही. मगर उस वक्त 108 में से एक पुष्प कम पड़ रहा था. तब श्री राम ने अपना एक नेत्र शक्ति को अर्पित कर दिया. इसी लिए राम को कमलनयन भी कहते हैं. पूजा के वक्त मां दुर्गा की प्रतिमा को 108 निल कमल पुष्पों की माला से सजाया जाता है. और जिस दिन रावण का वध हुआ उसे हम दशहरे के रूप में मनाते हैं.
एक और मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्र में महिसासुर मर्दिनी की पूजा होती है. चैत्र यानी अप्रैल का महिना. इसे बासंती पूजा भी कहते हैं. माना जाता है कि चैत्र के इसी समय में मां दुर्गा ने महिसासुर का वध किया था.  महिसासुर को वरदान प्राप्त था कि किसी भी पुरुष के हाथों उसकी मृत्यु न हो सके. इस तरह स्वयं को अमर समझकर देवलोक पर महिसासुर ने अत्याचार शुरू कर दिया. तब देवताओं ने मिलकर एक असीम शक्ति का निर्माण किया. शक्ति की देवी मां दुर्गा. देवताओं द्वारा प्रदान किए गए प्राण, ज्ञान, अस्त्र, पुष्प से महाशक्ति का निर्माण हुआ.. शक्ति की देवी मां दुर्गा जिसने महिसासुर का वद्ध किया.