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Thursday, October 10, 2013
Wednesday, October 9, 2013
नवरात्र में सज चुका है बाबा केदार का दरबार | माता का दर्शन
16-17 जून का जिक्र होते ही जहन में अभी भी केदारनाथ में मची महातबाही का मंजर तैरने लगता है लेकिन उन डरावनी यादों को पीछे छोड़ते हुए केदारनाथ को फिर से गुलजार किया गया है. नवरात्र में सज चुका है बाबा केदार का दरबार. केदारनाथ में आज तक भी शामिल हुआ उस भव्य पूजा में जब शिव के धाम में भोले और भगवती का जयकारा गूंज उठा.
Tuesday, October 8, 2013
पंचम नवरात्र: वर देंगी महाशक्ति स्कंदमाता
मार्कंडेय पुराण के अनुसार पंचम नवरात्र की देवी का नाम स्कंदमाता है.
प्राचीन कथा के अनुसार एक बाद देवराज इन्द्र ने बालक कार्तिकेय को कहा की
देवी गौरी तो अपने प्रिय पुत्र गणेश को ही अधिक चाहती है. तुम्हारी और कभी
दयां नहीं देती. क्योंकि तुम केवल शिव के पुत्र हो व तुमको तो देवी
कृत्तिकाओं ने ही पाला है.
इस पर कार्तिकेय मुस्कुराए और बोले जो माता संसार का लालन पालन करती है. जिसकी कृपा से भाई गणेश को देवताओं में अग्रणी बनाया. वो क्या मेरी माता होते हुये भेद-भाव करेगी. तुम्हारे मन में जो संदेह पैदा हुआ है उसकी आधार भी मेरी माता ही हैं. मैं उनका पुत्र तो हूँ ही लेकिन उनका भक्त भी हूँ.
हे इन्द्र जग का कल्याण करने वाली मेरी माता निसंदेह भक्तबत्सल भवानी है. ऐसे बचन सुन कर ममतामयी देवी सकन्दमाता प्रकट हुई और उनहोंने अपनी गोद में कार्तिकेय को बिठा कर दिव्य तेजोमय रूप धार लिया. जिसे देखते ही देवराज इन्द्र क्षमा याचना करने लगे. सभी देवगणों सहित इंद्र ने माता की स्तुति की. माता चतुर्भुजा रूप में अत्यंत ममता से भरी हुई थी. दोनों हाथों में पुष्प एक हाथ से वर देती व कार्तिकेय को संभाले हुये देवी तब सिंह पर आरूढ़ थी. देवी का कमल का आसन था.
तब देवताओं के द्वारा स्तुति किये जाने पर देवी बोली मैं ही संसार की जननी हूँ मेरे होते भला कोई कैसे अनाथ हो सकता है? मेरा प्रेम सदा अपने पुत्रों व भक्तों के बरसता रहता है. सृष्टि में मैं ही ममता हूँ. ऐसी ममतामयी माँ की पूजा से भला भक्त को किस चीज की चिंता हो सकती है? बस माँ को पुकारने भर की देर है. वो तो सदा प्रेम लुटती आई है.
भगवान् कार्तिकेय जी के कारण उतपन्न हुई देवी ही स्कंदमाता है . महाशक्ति स्कंदमाता पार्वती जी का तेजोमय स्वरुप हैं जो सृष्टि को माँ के रूप में ममत्व और प्रेम प्रदान करती हैं. भगवान् कार्तिकेय का लालन पालन करने के कारण ही द्वि को स्कंदमाता कहा जाता है. देवी के उपासक जीवन में कभी अकेले नहीं होते ममतामयी स्कंदमाता सदा उनके साथ रह कर उनकी रक्षा करती है. संकट की स्थित में पुकारे पर देवी सहायता व कृपा करने में बिलम्ब नहीं करती. थोड़ी सी प्रार्थना व स्तुति से ही प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं.
देवी को प्रसन्न करने के लिए पांचवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए . पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें . फिर क्रमश: कवच का. अर्गला स्तोत्र का. फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें. आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है . यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें
देवी स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए पांचवें दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र- ॐ सः ह्रीं ऐं स्कंदमातायै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
जैसे मंत्र- ॐ सः ह्रीं ऐं स्कंदमातायै स्वाहा:
देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ छां छायास्वरूपिन्ये दूतसंवादिन्यै नम:
(नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें)
व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते
भयेभ्यस्त्राही नो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते
आज सुहागिन स्त्रियों को लाल अथवा मेरून रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए. पुरुष साधक भी साधारण और रक्त वस्त्र धारण कर सकते हैं . भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए. प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
इस पर कार्तिकेय मुस्कुराए और बोले जो माता संसार का लालन पालन करती है. जिसकी कृपा से भाई गणेश को देवताओं में अग्रणी बनाया. वो क्या मेरी माता होते हुये भेद-भाव करेगी. तुम्हारे मन में जो संदेह पैदा हुआ है उसकी आधार भी मेरी माता ही हैं. मैं उनका पुत्र तो हूँ ही लेकिन उनका भक्त भी हूँ.
हे इन्द्र जग का कल्याण करने वाली मेरी माता निसंदेह भक्तबत्सल भवानी है. ऐसे बचन सुन कर ममतामयी देवी सकन्दमाता प्रकट हुई और उनहोंने अपनी गोद में कार्तिकेय को बिठा कर दिव्य तेजोमय रूप धार लिया. जिसे देखते ही देवराज इन्द्र क्षमा याचना करने लगे. सभी देवगणों सहित इंद्र ने माता की स्तुति की. माता चतुर्भुजा रूप में अत्यंत ममता से भरी हुई थी. दोनों हाथों में पुष्प एक हाथ से वर देती व कार्तिकेय को संभाले हुये देवी तब सिंह पर आरूढ़ थी. देवी का कमल का आसन था.
तब देवताओं के द्वारा स्तुति किये जाने पर देवी बोली मैं ही संसार की जननी हूँ मेरे होते भला कोई कैसे अनाथ हो सकता है? मेरा प्रेम सदा अपने पुत्रों व भक्तों के बरसता रहता है. सृष्टि में मैं ही ममता हूँ. ऐसी ममतामयी माँ की पूजा से भला भक्त को किस चीज की चिंता हो सकती है? बस माँ को पुकारने भर की देर है. वो तो सदा प्रेम लुटती आई है.
भगवान् कार्तिकेय जी के कारण उतपन्न हुई देवी ही स्कंदमाता है . महाशक्ति स्कंदमाता पार्वती जी का तेजोमय स्वरुप हैं जो सृष्टि को माँ के रूप में ममत्व और प्रेम प्रदान करती हैं. भगवान् कार्तिकेय का लालन पालन करने के कारण ही द्वि को स्कंदमाता कहा जाता है. देवी के उपासक जीवन में कभी अकेले नहीं होते ममतामयी स्कंदमाता सदा उनके साथ रह कर उनकी रक्षा करती है. संकट की स्थित में पुकारे पर देवी सहायता व कृपा करने में बिलम्ब नहीं करती. थोड़ी सी प्रार्थना व स्तुति से ही प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं.
देवी को प्रसन्न करने के लिए पांचवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए . पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें . फिर क्रमश: कवच का. अर्गला स्तोत्र का. फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें. आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है . यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें
देवी स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए पांचवें दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र- ॐ सः ह्रीं ऐं स्कंदमातायै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
जैसे मंत्र- ॐ सः ह्रीं ऐं स्कंदमातायै स्वाहा:
देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ छां छायास्वरूपिन्ये दूतसंवादिन्यै नम:
(नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें)
व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते
भयेभ्यस्त्राही नो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते
आज सुहागिन स्त्रियों को लाल अथवा मेरून रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए. पुरुष साधक भी साधारण और रक्त वस्त्र धारण कर सकते हैं . भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए. प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
'सिउली' से महकती दुर्गा पूजा
'सिउली' से महकती दुर्गा पूजा
सिउली... एक खास फूल जो कि साल के बस इन्हीं एक आध महीने में खिलता है, और
इसी फूल से होती है मां दुर्गा की पूजा. मान्यताएं कहती है कि देवों के
समुद्र मंथन से निकला था सिउली का पेड़. इसे पारिजात पुष्प भी कहते हैं.
शायद इसी लिए इस पुष्प को हरश्रृंगार भी कहते हैं.
हमारे यहां न जाने कितनी सारी मान्यताएं हैं और उन मान्यताओं से जुड़े कितने त्योहार. हर पर्व का अपना एक अलग ही रंग रूप देखने को मिलता है. और हर पर्व में कुछ खास चीजें होती हैं. हर त्योहार किसी खास फूल, फल या वातावरण का प्रतीक होता है. दुर्गा पूजा में भी कई ऐसी बातें हैं.
वैसे तो साल के इस वक्त में पूरे देश भर में नवरात्र की धूम मची रहती है मगर बंगाल में दुर्गा पूजा को एक महोत्सव की तरह मनाया जाता है. मान्यताएं कहती हैं कि श्री राम ने रावण का वध करने से पहले मां दुर्गा की पूजा की थी. देवताओं की शक्ति से बनी मां दुर्गा जिसने महिसासुर का वध किया था.
दुर्गा पूजा... साल के वो कुछ दिन जब हमारी आस्था देवी की प्रतिमा में बस जाती है. यह वो वक्त भी होता है जब हमें महसूस होता है कि अब गर्मी धीरे धीरे जा रही है. स्वयं ही खिल कर झरती हुई सिउली की खुशबू से सुबह भी महकती है.
सिउली... एक खास फूल जो कि साल के बस इन्हीं एक आध महीने में खिलता है, और इसी फूल से होती है मां दुर्गा की पूजा. मान्यताएं कहती है कि देवों के समुद्र मंथन से निकला था सिउली का पेड़. इसे पारिजात पुष्प भी कहते हैं. शायद इसी लिए इस पुष्प को हरश्रृंगार भी कहते हैं. दिन में पुष्पांजली के मंत्रोच्चारण से सारा समा गूंज उठता है. साधारण सी खिचड़ी जो प्रसाद के रूप में मिलती है, वो किसी स्वादिष्ट पकवान से कम नहीं लगती. संध्या आरती के वक्त जब हाथ में धुनोची लिए लोग ढ़ाक के धुनों पर थिरकते हैं तो वो नजारा ही देखने योग्य होता है. रामलीला और जगरातों की रोशनी से रात का अंधेरा भी प्रकाशित हो उठता है.
मान्यताएं बड़ी ही रोचक होती हैं. एक मान्यता के अनुसार नवरात्र में मां दुर्गा का आगमन होता है. देवी ससुराल से अपने माएके आती हैं. नवरात्र के छठ्ठे दिन देवी की प्रतिमा का प्रतिष्ठान किया जाता है. सप्तमी, अष्टमी और नवमी में देवी की प्रतिमा का पूजन होता है. भक्ति भाव और आस्था से परिपूर्ण विधियों का पालन किया जाता है. दसवें दिन मां की प्रतिमा को विसर्जित कर वापस ससुराल के लिए विदा कर दिया जाता है, इसी आशा के साथ कि अगले बरस मां फिर दर्शन देगी.
एक मान्यता यह भी है कि श्री राम ने मां दुर्गा की पूजा की थी. रावण का वध करने से पहले श्री राम शिव की पूजा कर रहे थे. भोलेनाथ ने ही राम को कहा शक्ति की पूजा करने के लिए. श्री राम ने 108 निल कमल पुष्पों से शक्ति की पूजा करनी चाही. मगर उस वक्त 108 में से एक पुष्प कम पड़ रहा था. तब श्री राम ने अपना एक नेत्र शक्ति को अर्पित कर दिया. इसी लिए राम को कमलनयन भी कहते हैं. पूजा के वक्त मां दुर्गा की प्रतिमा को 108 निल कमल पुष्पों की माला से सजाया जाता है. और जिस दिन रावण का वध हुआ उसे हम दशहरे के रूप में मनाते हैं.
एक और मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्र में महिसासुर मर्दिनी की पूजा होती है. चैत्र यानी अप्रैल का महिना. इसे बासंती पूजा भी कहते हैं. माना जाता है कि चैत्र के इसी समय में मां दुर्गा ने महिसासुर का वध किया था. महिसासुर को वरदान प्राप्त था कि किसी भी पुरुष के हाथों उसकी मृत्यु न हो सके. इस तरह स्वयं को अमर समझकर देवलोक पर महिसासुर ने अत्याचार शुरू कर दिया. तब देवताओं ने मिलकर एक असीम शक्ति का निर्माण किया. शक्ति की देवी मां दुर्गा. देवताओं द्वारा प्रदान किए गए प्राण, ज्ञान, अस्त्र, पुष्प से महाशक्ति का निर्माण हुआ.. शक्ति की देवी मां दुर्गा जिसने महिसासुर का वद्ध किया.
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