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Wednesday, October 9, 2013

मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य व कांग्रेस के सामने चुनौतियों का अंबार,आसान नहीं दिखलायी देता भाजपा के गढ को भेदना?

भोपाल/मध्यप्रदेश में चुनाव को लेकर घमासान जारी है और सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी लगातार जनकल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की बात और शिव का साथ लेकर जनता के मध्य जा रही है। लगभग एक दशक से प्रदेश में राज्य कर रही भाजपा और वनवास भोग रही कांग्रेस अपने-अपने प्रयास में लगी हुई है। एक का प्रयास सत्ता में पुन: तीसरी बार वापिसी का है तो दूसरी का दस बर्ष के वनवास को समाप्त करने कर राज्य प्राप्ति का है। दोनो के अपने -अपने दावे हैं तो आरोप-प्रत्यारोप का भी सिलसिला प्रारंभ है। प्रचार प्रसार के माध्यम से जनता के बीच जाकर अपनी-अपनी बात दोनो रख रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी जहां अपने किले को अभेद बनाने की दिशा में पिछले लगभग दो बर्ष से प्रयास कर हर उस कमी को दूर करने में लगी हुई है जो उसके किले को भेद सकने की आशंका को व्यक्त करती है। वहीं कांग्रेस गढ को ढहाने के प्रयास में अपना अभियान प्रारंभ करने में काफी पीछे दिखलाई देती है। क्योंकि आप देखेंगे कि हाल के कुछ ही सप्ताह पूर्व इसकी कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपी गयी है जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज इस समय प्रदेश के लगभग सत्तर प्रतिशत क्षेत्र को जनार्शीवाद यात्रा के माध्यम से नाप चुके थे। कई धडों में बटी एवं केन्द्र सरकार की लगातार विफलताओं के बीच घिरी कांग्रेस की कमान प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया का सौपने पर हालांकि कांग्रेस में उत्साह तो आया परन्तु इस उत्साह को अपने पक्ष मत मतदाताओं से डलवाने में कांग्रेसी कितने कामयाब हो पाते हैं यह प्रश्र चिंह अंकित होता नजर आ रहा है। यह बात अलग है कि अनेक मंचों पर हम साथ-साथ है का संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है परन्तु यह कितने साथ-साथ हैं किसी से छिपा नहीं है। लगातार कई बर्षों तक शांत रहने के बाद बर्षाती मेंढक की तरह नेताओं का टर्राने को जनता समझ रही है। क्योंकि जिस प्रकार के आरोपों की झडी लगायी जा रही है उसमें कितना दम है किसी से छिपा नहीं है इस बात की चर्चा जनता में आसानी से सुनी जा सकती है। कांग्रेस का प्रयास है कि वह एक बडी दीवार को खडा कर भाजपा को तीसरी बार सत्ता में आने से रोके और वह उसी के तहत कार्य करने में लगी हुई है।
ज्योति का आकर्षण -
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के नेता अब ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना स्टार प्रचारक मान चुकी है जो लगातार सभाओं और रोड शो के माध्यम से मतदाताओं के मध्य पहुंच उनको भावनात्मक मोडने के प्रयास में लगे हुये हैं। कभी गीत गाकर तो कभी गुनगुना कर हालांकि वह अपने पिता की तरह ही जनता में आकर्षण का केन्द्र बन जाते हैं और जनता उनको देखने के लिये लालायित दिखलायी देती है। प्रदेश चुनाव समीति की कमान संभाल चुके सिंधिया को तो कुछ प्रदेश का मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार मानने लगे हैं जबकि उनकी भूमिका को प्रदेश में सत्ता दिलाने के लिये तय किया गया है। देखा जाये तो राज्य में एक दो नहीं कई दिग्गजों की दावेदारी उक्त पद को लेकर होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। देखा जाये तो गुटबाजी से त्रस्त रही कांग्रेस लम्बे समय तक प्रदेश में दिशाहीन रही। विपक्ष में होते हुए भी सत्तारूढ़ दल के लिए चुनौतियां खड़ी करने में असफल रही। प्रदेश में लम्बे समय से चली आ रही गुटबाजी का मामला राहुल गांधी के सामने भी खुलकर सामने आ चुका है। वैसे देखा जाये तो ज्योतिरादित्य खुद को मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से बाहर बतलाते हैं परन्तु जिस तरह से पार्टी उन्हें सामने लाकर प्रस्तुत किया जा रहा है उससे तो एैसा प्रतीत होता है कि वह अपना सेनापति अब सिंधिया को ही मानकर चल रही है और उनकी भूूिमका प्रदेश में सरकार बनवाने में अहम होगी। वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रदेश में मृत प्राय हो चुकी कांग्रेस में उर्जा का संचार तो हुआ है ।
क्या हो पायेंगे कामयाब-
मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के विशाल गढ को भेदने में सिंधिया क्या कामयाब हो पायेंगे इस बात पर प्रश्र उपज रहे हैं। क्योंकि यह गढ कोई सामान्य नहीं माना जा सकता जिस तरह से भाजपा ने कार्य पिछले दो बर्षो से प्रारंभ कर दिया था वह एक बडी रणनीति का हिस्सा है। वहीं चुनाव प्रबंधन के साथ ही हर छोटी सी छोटी बात को समझ आगे बढना अपने कार्यकर्ताओं को लगातार उर्जा और ज्ञान से भरने का प्रयास भाजपा बर्षों से र रही है। जबकि अपनी जगजाहिर गुटबाजी से अभी भी उबर नहीं पायी है भले ही वह हम साथ-साथ हैं का ढिडोरा पीटे। भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ताओं का ग्वालियर में कुछ माह पूर्व प्रशिक्षण और उसके बाद विशाल कार्यकर्ता महाकुंभ का आयोजन ने विपक्षियों की नींद तो उडा ही दी है। वहीं क्या हुआ तेरा वादा को गुन गुनाने वाले के तरकस के तीरों के संहारों को भाजपा आसानी से झेल अपने लक्ष्य की ओर बढ रही है। सूत्र बतलाते हैं कि भाजपा संगठन ने यह तय कर रखा है कि अभी जबाब जिनका जरूरी वही दो समय आने पर प्रहार किया जायेगा। वहीं कांग्रेस के नेताओं को लगातार तिलमिलाहट का अनुभव होने के कारण कुछ न कुछ मुंह से एैसे शब्द निकलना भाजपा के लिये हथियार बन रहे हैं या वह उनका प्रयोग अधिसूचना जारी होने के बाद करेगी। इसे तिलमिलाहट का नतीजा ही कहा जायेगा कि दिग्विजय सिंह का राघव जी के संस्कारों की बात तो की परन्तु वह अभिषेक मनु सिंघवी,नारायण दत्त तिवारी सहित अनेक नेताओं को भूल गये?सिंधिया अपने आरोपों में प्रदेश के भ्रष्टाचार को बताते हैं पर केन्द्र के मामले में खामोश हो जाते हैं? हाल ही में इनका प्रदेश में नर्मदा एवं अन्य नदियों के साथ प्रदेश सरकार द्वारा किया जाने वाला बलात्कार बतलाना इसी तिलमिलाहट का हिस्सा माना जा सकता है? अब भाजपा तो इसको हथियार बनायेगी ही? वहीं कांग्रेस में ही दिग्गजों की कमी नहीं है जो कि अपने आपको मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार मानते थे और हैं। जिनमें प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया,दिग्विजय सिंह,कमलनाथ,सुरेश पचौरी,अजय सिंह राहुल के नाम प्रमुख बतलाये जाते हैं। वहीं भूरिया का राहुल के संग साये की तरह साथ रहना और सिंधिया समर्थको का राहुल के समक्ष सिंधिया समर्थन में नारेबाजी करना दिल में चोट तो पहुंचा ही रहा होगा ? जानकारों की माने तो इस घटना का असर बाद में दिखलायी देगा। ज्ञात हो कि भूरिया प्रमुख नाम के तौर पर उभरे और अपने आप शिथिल हो गए जबकि ज्योतिरादित्य कांग्रेस की बुझी हुई मशाल को फिर से प्रज्जवलित करने में निरंतर कामयाब होते नजर आ रहे हैं। वहीं प्रदेश में आगमन के दौरान कांग्रेस कार्यालय में हुये घमासान पत्रकारों के साथ हुये दुर्वव्हार और राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह को बैठक से बाहर रखना भी अपने परिणाम तो दिखलायेगा ही? इसी क्रम में टिकिट वितरण के मामले में भी देखें तो महिला कांग्रेस और युवक कांग्रेस के लगभग 6 दर्जन सीटों पर प्रबल दावेदारी जतलायी जा रही है। वहीं दिग्गजों के पुत्रों को टिकिट देने की मांग का मामला भी सामने आ रहा है जो मुश्किल पैदा करेगा। सूत्रों की माने तो मध्यप्रदेश कांग्रेस के फिलहाल दो कदवर नेताओं के बेटों के लिये दो विधायकों के टिकट काटने का कार्य प्रारंभ हो चुका है। यह बात अलग है कि प्रदेश चुनाव अभियान समिति ने अपनी प्रथम बैठक के दौरान मौजूदा विधायकों को पुन: से चुनावी समर में उतारने की सहमति बनाकर प्रस्ताव स्क्रीनिंग कमेटी को भेज दी है। परन्तु सूत्रों की माने तो राघौगढ़ विधायक मूल सिंह एवं थांदला विधायक वीर सिंह भूरिया का टिकट कटना तय माना जा रहा है। कांग्रेस के ही राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया विधानसभा चुनाव लडाऩा चाहते हैं। जयवर्धन सिंह पिछले दो साल से राघौगढ़ विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय बतलाये जा रहे है और उक्त सीट पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की पारंपरिक सीट मानी जाती है। जानकारी के अनुसार जयवर्धन के लिए सीट छोडऩे के बदले में मूल सिंह को संगठन में कोई महत्वपूर्ण पदाधिकारी बनाने पर विचार चल रहा है। वहीं दूसरी ओर कांतिलाल भूरिया के पुत्र विक्रांत भूरिया को प्रदेश की झाबुआ जिले की थांदला विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाने पर जोर दिया जा रहा है। विक्रान्त पिछले कुछ समय से इसी क्षेत्र में सक्रिय दिखलायी दे रहे हैं। ज्ञात हो कि भूरिया ने कुछ माह पूर्व वीर सिंह भूरिया को झाबुआ जिले का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था जो इसी रणनीति का हिस्सा बतलाया जा रहा है। इसी क्रम में कांग्रेस के ही कुछ और दिग्गजों के पुत्रों के नाम बतलाये जाते हैं जिनमें कमलनाथ के बेटे का भी सम्मिलित होने की चर्चा है। ऐसी स्थिति में पार्टी को अनेक मुश्किलों का सामना तो करना ही पडेगा?
प्रमुख चुनौतियां -
मध्यप्रदेश में सत्ता प्राप्ति के लिये कांगे्रस के सामने अनेको चुनौतियां सामने हैं। भारतीय जनता पार्टी जहां अपनी तैयारियों के साथ तय समय पर आक्रमण कर रही है और लगातार प्रचार-प्रसार में कई गुना आगे निकल चुकी है तो कांग्रेस के सामने इसका पीछा कैसे किया जाये यह एक बडी समस्या नजर आ रही है। शिवराज विभिन्न जनकल्याणकारी एवं विश्व की अकेली अनोखी प्रदेश सरकार की योजनाओं के माध्यम से जनता मेें पैठ बना चुके हैं। वहीं राजनीति के दिग्गजों की रणनीति तथा जनता के मन में नमो अर्थात् नरेन्द्र मोदी,शिवराज और कमल का फूल प्रवेश करा सकने में काफी कामयाब हो चुके हैं जबकि कांग्रेस में इसका आभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है? वहीं कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बाहर हुए दस साल बीत चुके हैं। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती है टिकटों का बंटवारा। जोड़ तोड़ से टिकट हासिल करने वाले, योग्य लेकिन वंचित रहने वाले, असंतुष्ट जो जोड़ तोड़ के बाद भी टिकट हासिल ना कर पाए। इन तीनो ही श्रेणी के प्रत्याशी प्रदेश में कांग्रेस की लुटिया डुबोने के लिए काफी हैं। पार्टी के भीतर टिकट हासिल करने के लिए ज्योतिरादित्य की अनुकम्पा के साथ-साथ पचौरी गुट, दिग्विजय गुट आदि में घमासान जारी है। वहीं सूत्र बतलाते हैं कि पार्टी में फूल छाप कांग्रेसी भी अपनी अहम भूमिका को पूर्व की भांति निभाने में इस बार बडी ताकत लगायेंगे? भाजपा केन्द्र की नाकामयाबी,महंगायी,प्रदेश के साथ किये जा रहे सौतेलेपन,भ्रष्टाचार के साथ ही अपनी उपलब्धियों को लेकर कार्य कर रही है। देखा जाये तो मोदी,शिव के साथ ही कमल का जादू सिर चढकर बोल रहा है जो मतदाताओं को पूर्ण रूप से भाजपा के पक्ष में करते देखा जा सकता है। पार्टी के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कांग्रेस ने चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी कमलनाथ के हाथो में है। घोषणापत्र तैयार करने की जिम्मेदारी सुरेश पचौरी, सत्तारुढ भाजपा के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करने की जिम्मेदारी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह जबकि चुनाव प्रचार अभियान समिति की कमान ज्योतिरादित्य के राजसी कंधो पर देते हुये आगे कर दिया गया है इसलिए प्रश्न लाजिमी है कि क्या सिंधिया आगामी चुनाव में भाजपा को हैट्रिक लगाने से रोक सकेंगे?

Wednesday, October 2, 2013

Akhilesh Yadav: Govt decisions on ordinance for convicted MPs with eye on elections


Lucknow: As the ruling Congress backtracked on a controversial ordinance to protected convicted lawmakers, Samajwadi Party leader Akhilesh Yadav slammed what it called decisions taken with an eye on elections due in May.

"The manner in which the ordinance was brought and is now being hurriedly withdrawn, shows that decisions are being taken keeping elections in mind. Because of the elections all ruling political parties are in a hurry," said Mr Yadav, the Chief Minister of Uttar Pradesh.

The ordinance, which seeks to circumvent a Supreme Court order disqualifying convicted lawmakers by allowing them to stay on while a high court hears their appeal, is expected to be formally abandoned at a cabinet meeting this evening.


While Akhilesh Yadav was circumspect in his response to the government's retreat, a leader of his Samajwadi party warned that withdrawing the ordinance would be 'dangerous for democracy" and said the PM must decide whether his own position was higher than that of his party.

"If the ordinance is taken back, it will prove that in this country an individual is bigger, not the government," said Samajwadi Party leader Naresh Aggarwal, in an apparent reference to Rahul Gandhi, whose public denouncement of the ordinance as 'nonsense' set off a chain of events leading up to the expected withdrawal of the controversial measure.

"We support the ordinance because one can appeal to higher courts," said Mr Aggarwal, "why should leaders lose their seat only on the lower court's judgement?"

The SP leader questioned why the government was ignoring its own allies, "just because Rahul Gandhi had decided."

The Samajwadi Party, whose 22 MPs prop up Manmohan Singh's minority government, has been a capricious ally in recent times, criticizing the government on a range of issues while coming to its aid during voting on crucial measures in Parliament.

Akhilesh Yadav has said that the party will take a formal stand on the ordinance controversy in a meeting of its parliamentary board headed by Mulayam Singh Yadav.

Tuesday, October 1, 2013

Congress MP Rasheed Masood arrested, sentenced to four years

New Delhi: Rasheed Masood, a Congress parliamentarian, has been arrested after he was sentenced to four years in prison by a Delhi court for corruption.

The 66-year-old member of the Rajya Sabha had been convicted last week for cheating, criminal conspiracy and forgery.

The Central Bureau of Investigation (CBI), which investigated the case, asked the judge today to punish Mr Masood with the maximum sentence of seven years.

The agency's lawyer said in court today that "the law-maker has become a law-breaker."

Mr Masood is the first parliamentarian to be found guilty in a criminal case after the Supreme Court ruled that lawmakers stand immediately disqualified if they are convicted for offenses that carry a sentence of more than two years.

Mr Masood has been convicted of misusing his office as Health Minister in the 90s to grant admission in medical colleges to students who were not eligible. Among the group of students convicted for the scam is Mr Masood's nephew.

Mr Masood was Health Minister in the government headed by VP Singh in the early 90s.